
महायशस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के दिशानिर्देश से कोलकाता से आए हुए उपासक द्वय सुशील बाफना और सुमेरमल बैद की उपस्थिति में सोमवार को पर्युषण महापर्व का शिखर दिवस भगवती संवत्सरी पर्व बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया। ऐसे तो भारतवर्ष में अनेकों पर्व मनाए जाते हैं जिसमें मिठाई, मौज-मस्ती, खाना-पीना, मनोरंज, नए वस्त्र आदि की है प्रमुखता होती है। मगर पर्युषण पर्व ही को एकमात्र ऐसा पर्व है जो भौतिक नहीं आध्यात्मिक पर्व है। पर्युषण पर्व आत्मसाधना और आत्माराधना का पर्व है। यह पर्व चातुर्मासिक काल के 50 दिन पूरे होने के बाद भाद्रव कृष्ण पक्ष की द्वादशी से लेकर शुक्ल पक्ष की पंचमी तक मनाया जाता है।इसका मुख्य दिवस संवत्सरी महापर्व है। व्यावहारिक दृष्टि से संवत्सरी का समय वर्षा ऋतु का है। सावन-भाद्रव के महीने में वनस्पतिकाय में हरियाली व वर्षा ऋतु के कारण सूक्ष्म जीवों की उत्पति अधिक होती है। इसीलिए सावन, भाद्रव के महीने में हरियाली का भी जैन अनुयायी संख्या में सीमित या त्याग करते हैं। वर्षा ऋतु में तपस्या आसानी से होती है इन दिनों में सहज धर्म की भावना अधिक रहती है। लाखों लोग इसमें शामिल होते हैं। इस दृष्टि से यह धर्माराधना का मुख्य पर्व है। इस महापर्व के क्रमशः खाद्य संयम दिवस, स्वाध्याय दिवस, सामायिक दिवस, वाणी संयम दिवस, अणुव्रत चेतना दिवस, जप दिवस, घ्यान दिवस, संवत्सरी दिवस इसके मुख्य अंग हैं। वहीं क्षमापन दिवस के साथ इसकी निष्पत्ति होती है। जैन धर्म संयम, त्याग और अहिंसा प्रधान धर्म है। अध्यात्म साधना का अभिनव उपक्रम है पर्युषण का संवत्सरी पर्व। यह पर्व अपने आप को तोलने का पर्व है। इस पर्युषण पर्व पर धर्म आराधना करवाने के लिए कोलकाता से आए हुए उपस्थित हुए सुशील बाफना एवं सुमेरमल बैद ने अपने धार्मिक वक्तव्य के द्वारा त्याग तपस्या एवं ज्ञान की गंगा बहाई। पर्युषण पर्व पर चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर की जीवन के पूर्व के 27 भवों के बारे में विस्तृत चर्चा की। भगवान महावीर के जन्म दीक्षा,परीषह, कैवल्य एवं उनके चातुर्मास के बारे में बतलाया। उपासक सुशील बाफना ने कहा कि संयम की चेतना को विकसित करने का आधार है महावीर की जीवनी। महावीर की जीवनी पुरुष और पराक्रम की गाथा गाती है।भगवान महावीर के अहिंसा अनेकांत,अपरिग्रह सिद्धांतों की वर्तमान में प्रासंगकता के बारे में बतलाया। जैन धर्म के तीर्थंकर महावीर स्वामी के उत्तराधिकारी सुधर्मा स्वामी से लेकर अन्य प्रभावक आचार्यो के जीवन वृतांत के बारे में वरिष्ठ श्रावक निर्मल मरोठी ने बताया। महापर्व के इस भगवती दिवस की शुभ शुरुआत आचार्य श्री तुलसी द्वारा रचित गीतिका' आयो जैन धर्म को प्रमुख पर्व... 'महिला मंडल की बहनों के द्वारा मंगलाचरण से की गई। चंदनबाला एवं जम्बू स्वामी के ऊपर गीतिका की प्रस्तुति महिला मंडल एवं कन्या मंडल के द्वारा दी गई। ज्ञानशाला के बच्चों के द्वारा एक रोचक प्रस्तुति प्रस्तुत की गई। इस पर्व पर जैनधर्म के सैकड़ों अनुयायी दिनभर खाने पीने का त्याग किए हुए रहते हैं। सांयकालीन प्रतिक्रमण के द्वारा सभी 84 लाख जीवयोनियों से क्षमा याचना करते हुए पौषध व्रत की साधना भी करते हैं। इस संवत्सरी पर्व का दूसरा दिन मैत्री दिवस के रूप में मनाया जाता है। जिसमें संसार की सभी 84 लाख जीवन योनियों से क्षमा याचना करते हुए अपने सभी मित्रों एवं सगे संबंधियों से क्षमा मांगी जाती है।जैन धर्म का यह पर्व मैत्री और शांति का संदेश देता है। यह व्यक्ति के अंदर की राग द्वेष की भावना को समाप्त करता है। तथा आपसी भाईचारे का संदेश देता है। तेरापंथ भवन इस पर्व पर जैन श्रावक श्राविकाओं से खचाखच भरा हुआ था। यह जानकारी उपाध्यक्ष मुकेश राखेचा ने राज कुमार लढ़ा को दी।